Ramayana Balakanda – बालकांड-कथा प्रारंभ:- कौशल प्रदेश, जिसकी स्थापना वैवस्वत मनु ने की थी, पवित्र सरयू नदी के तट पर स्थित है | सुंदर एवं समृद्ध अयोध्या नगरी इस प्रदेश की राजधानी है | वैवस्वत मनु के वंश में अनेक शूरवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली तथा यशस्वी राजा हुए जिनमें से राजा दशरथ भी एक थे | राजा दशरथ वेदों के मर्मज्ञ, धर्मप्राण, दयालु, रणकुशल, और प्रजापालक थे | उनके राज्य में प्रजा कष्टरहित, सत्यनिष्ठ एवं ईश्वरभक्त थी | उनके राज्य में किसी का किसी के भी प्रति भाव का सर्वथा अभाव था |

एक दिन दर्पण में अपने कृष्णवर्ण केशो के मध्य एक श्वेत रंग के केश को देखकर महाराज दशरथ विचार करने लगे कि अब मेरे यौवन के दिनों का अंत निकट है और अब तक मैं नि:संतान हूं | मेरा वंश आगे कैसे बढ़ेगा तथा किसी उत्तराधिकारी के अभाव में राज्य का क्या होगा? इस प्रकार विचार करके उन्होंने पुत्र प्राप्ति हेतु पुत्र यज्ञ करने का संकल्प किया | अपने कुलगुरू वशिष्ठ जी को बुलाकर उन्होंने अपना मंतव्य बताया तथा यज्ञ के लिए उचित विधान बताने की प्रार्थना की |
उनके विचारों को उचित तथा युक्त जानकर गुरु वशिष्ठ जी बोले, हे राजन! पुत्र यज्ञ करने से अवश्य ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी ऐसा मेरा विश्वास है | अतः आप शीघ्रतिशीघ् यज्ञ करने तथा इसके लिए एक सुंदर श्याम करण छोड़ने की व्यवस्था करें |
गुरु वशिष्ठ की मंत्रणा के अनुसार श्री महाराज दशरथ ने सूर्य नदी के उत्तरी तट पर अत्यंत मनोरम यज्ञशाला का निर्माण करवाया तथा मंत्रियों और सेवकों को सारी व्यवस्था कराने की आज्ञा देकर महाराज दशरथ ने रनिवास में जाकर अपनी तीनों रानियों कौशल्या, कैकेई और सुमित्रा को यह शुभ समाचार सुनाया | महाराज के वचनों को सुनकर सभी रानियां प्रसन्न हो गई |
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