यज्ञ का प्रारंभ

Ramayana Balakanda-बालकांड-राम का जन्म :- मंत्रीगणों तथा सेवकों ने महाराज की आज्ञानुसार श्यामकरण घोड़ा चतुरगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया | महाराज दशरथ ने देश देशांतर के मनश्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकांड पंडितों को जग संपन्न कराने के लिए बुलावा भेज दिया | निश्चित समय आने पर समस्त अभ्यागतो के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ जी तथा अपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋषि को लेकर यज्ञ मंडप में पधारे | इस प्रकार महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया | संपूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओ के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की सुगंध से महकने लगा |

यज्ञ की समाप्ति

Ramayana Balakanda-बालकांड-राम का जन्म

समस्त पंडितों, ब्राह्मणों, ऋषियो आदि को धनधान्य, गो आदि भेंट करके सादर विदा करने के साथ यज्ञ की समाप्ति हुई | राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद चरा को अपने महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया | प्रसाद ग्रहण करने के परिणाम स्वरूप परमपिता परमात्मा की कृपा से तीनों रानियों ने गर्भधारण किया |

जन्म

जब चेत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, बृहस्पति तथा शुक्र अपने अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लगन का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जोकि श्यामवर्ण, अत्यंत तेजोमय, परम कांति वान तथा अद्भुत सौंदर्य शाली था | उस शिशु को देखने वाले ठगे से रह जाते थे | इसके पश्चात शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेई के एक साथ तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ |

नामकरण

संपूर्ण राज्य में आनंद मनाया जाने लगा | महाराज के चार पुत्रों के जन्म के उल्लास में गाना कराने लगे और अप्सराय नृत्य कराने लगी | देवता अपने विमानों में बैठकर पुष्प वर्षा कराने लगे | महाराज ने उन्मुक्त हस्त से राज द्वार पर आए हुए भाट, चारण तथा आशीर्वाद देने वाले ब्राह्मणों और याचको को दान दक्षिणा दी | पुरस्कार ने प्रजा जनों को धनधान्य तथा दरबारियों को रत्न, आभूषण तथा उपाधियां प्रदान किया गया | चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ के द्वारा कराया गया तथा उनके नाम रामचंद्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे गए |

चारों भाइयों का प्रेम

Ramayana Balakanda-बालकांड-राम का जन्म

आयु बढ़ने के साथ ही साथ रामचंद्र गुण मैं भी अपने भाइयों से आगे बढ़ने तथा प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय होने लगे | उनमें अत्यंत प्रतिभा थी जिसके परिणामस्वरू अल्प काल में ही वे समस्त संगम विषयो में पारंगत हो गए | उन्हें सभी प्रकार के अस्त्र शस्त्रों को चलाने तथा हाथी, घोड़े एव सभी प्रकार के वाहनों की सवारी में उन्हें असाधारण निपुणता प्राप्त हो गई | वे निरंतर माता पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे | उनका अनुसरण शेष 3 भाई भी करते थे | गुरुजनों के प्रति जितनी श्रद्धा भक्ति इन चारों भाइयों में थी उतना ही उनमें प्रेम भी था | महाराज दशरथ का ह्रदय अपने चारों पुत्रों को देखकर गर्व और आनंद से भर उठता था|

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By Harsh

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